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तद॒श्विना॑ भि॒षजा॑ रु॒द्रव॑र्तनी॒ सर॑स्वती वयति॒ पेशो॒ऽअन्त॑रम्। अस्थि॑ म॒ज्जानं॒ मास॑रैः कारोत॒रेण॒ दध॑तो॒ गवां॑ त्व॒चि ॥८२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। अ॒श्विना॑। भि॒षजा॑। रु॒द्रव॑र्त्तनी॒ इति॑ रु॒द्रऽव॑र्त्तनी। सर॑स्वती। व॒य॒ति॒। पेशः॑। अन्त॑रम्। अस्थि॑। म॒ज्जान॑म्। मास॑रैः। का॒रो॒त॒रेण॑। दध॑तः। गवा॑म्। त्व॒चि ॥८२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:82


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विदुषी स्त्रियों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जिसको (सरस्वती) श्रेष्ठ ज्ञानयुक्त पत्नी (वयति) उत्पन्न करती है, (तत्) उस (पेशः) सुन्दर स्वरूप (अस्थि) हाड़ (मज्जानम्) मज्जा (अन्तरम्) अन्तःस्थ को (मासरैः) परिपक्व ओषधि के सारों से (कारोतरेण) जैसे कूप से सब कामों को वैसे (गवाम्) पृथिव्यादि की (त्वचि) त्वचारूप उपरि भाग में (रुद्रवर्तनी) प्राण के मार्ग के समान मार्ग से युक्त (भिषजा) वैद्यक विद्या के जाननेहारे (अश्विना) विद्याओं में पूर्ण दो पुरुष (दधतः) धारण करें ॥८२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे वैद्यक शास्त्र के जाननेहारे पति लोग शरीर को आरोग्य करके स्त्रियों को निरन्तर सुखी करें, वैसे ही विदुषी स्त्री लोग भी अपने पतियों को रोगरहित किया करें ॥८२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विदुषीभिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(तत्) पूर्वोक्तं हविः (अश्विना) विद्याव्यापिनौ (भिषजा) वैद्यकशास्त्रविदौ (रुद्रवर्तनी) रुद्रस्य प्राणस्य वर्तनिरिव वर्त्तनिर्मार्गो ययोस्तौ (सरस्वती) प्रशस्तज्ञानयुक्ता पत्नी (वयति) सन्तनोति (पेशः) (अन्तरम्) मध्यस्थम् (अस्थि) (मज्जानम्) (मासरैः) परिपक्वौषधिसंस्रावैः (कारोतरेण) कूपेनेव। कारोतर इति कूपनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.२३) (दधतः) धरतः (गवाम्) पृथिव्यादीनाम् (त्वचि) उपरि भागे ॥८२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यत् सरस्वती वयति तत्पेशोऽस्थि मज्जानमन्तरं मासरैः कारोतरेण गवां त्वचि रुद्रवर्त्तनी भिषजाऽश्विना दधतो दध्याताम् ॥८२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा वैद्यकशास्त्रविदः पतयः शरीरारोग्यादिकं विधाय स्त्रियः सततं सुखयेयुस्तथैव विदुष्यः स्त्रियः स्वपतीन् रोगरहितान् कुर्युः ॥८२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे वैद्यकशास्र जाणणारे पती शरीर निरोगी करून स्रियांना सदैव सुखी करतात, तसेच विदुषी स्रियांनीही आपल्या पतींना रोगरहित करावे.